Autobiography of vivekananda pdf

‘स्वामी विवेकानंद की आत्मकथा’ PDF Good-humored download link is given at say publicly bottom of this article. Command can see the PDF clarification, size of the PDF, sticking point numbers, and direct download Unforced PDF of ‘Swami Vivekanand Biography’ using the download button.

विवेकानंद की जीवनी – Swami Vivekanand Narrative PDF Free Download

स्वामी विवेकानंद का जीवन

सच बात तो यह है कि ‘विवेकानंद की आत्मकथा’ नितांत अनुवाद-कार्य नहीं है, बल्कि नए कलेवर में स्वामीजी की आत्मजीवनी है, जिसमें उनके द्वारा कही गई बातें या उनके द्वारा लिखे हुए पत्र या उनकी अपनी रचनाओं के अलावा एक भी अतिरिक्त शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

अंग्रेजी में पहली बार प्रकाशित होने के प्रायः आधी शती बाद बँगला में भाषांतरित होने के मामले में हर पल जिन्होंने प्रोत्साहन, सलाह-परामर्श, आशीर्वाद और अनुमोदन दिया, वे हैं अद्वैत आश्रम के श्रद्धेय प्रेसिडेंट स्वामी बोधसारानंद!

इस जटिल उक्ति-संग्रह के जरिए एक अनन्य जीवन का विस्मयकारी और विचित्र कथाचित्र वर्तमान पाठक पाठिकाओं के सामने स्पष्ट हो उठेगा, यह मेरा परम विश्वास है।

इससे भी ज्यादा विस्मयकारी बात यह है कि उनतालीस वर्ष, पाँच महीने, चौबीस दिन के संक्षिप्त जीवन में संख्यातीत बाधा-विपत्तियों और विडंबनाओं के बावजूद एक महाजीवन के अविस्मरणीय नायक हो उठे थे हमारे परम प्रिय स्वामी विवेकानंद!

तेईस वर्ष में संन्यास ग्रहण करने, बाकी जीवन चार-चार महादेशों के पथ पर चरैवेति की रीत निभाते हुए भी अपने बारे में वे भावी पीढ़ी के लोगों के लिए, जो-जो बातें, वाणियाँ रख गए हैं, वह सब पढ़े बिना विश्वास नहीं होता।

आज भी विवेकानंद की निजी बातें हम सबको सिर्फ प्रेरित ही नहीं करतीं, मन में टीस भी पैदा करती हैं। उनकी संख्याहीन, सीमाहीन व्यथा के बारे में सोचकर हम असहनीय यंत्रणा से भर उठते हैं।

इस काल के और आगामी काल के जो सब मनुष्य जब विभिन्न रूप में, विभिन्न कारणों से दुःख-जर्जर होंगे, जब उन लोगों की आँखों के सामने निराशा का अंधकार उतर आने की आशंका नजर आने लगेगी, तब विवेकानंद की यह आत्मकथा उन सभी लोगों को प्रोत्साहित करेगी और किसी-किसी क्षेत्र में भटके लोगों का मार्गदर्शन भी करेगी, इस बारे में मुझे संदेह नहीं है।

-शंकर

मेरा बचपन

संन्यासी का जन्म बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय के लिए होता है।

दूसरों के लिए प्राण देने, जीवों के गगनभेदी क्रंदन का निवारण करने, विधवाओं के आँसू पोंछने, पुत्र वियोग-विधुरा के प्राणों को शांति प्रदान करने, अज्ञ अधम लोगों को जीवन-संग्राम के उपयोगी बनाने, शास्त्रोपदेश-विस्तार के द्वारा सभी लोगों के ऐहिक-पारमार्थिक मंगल करने और ज्ञानालोक द्वारा सबमें प्रस्तुत ब्रह्म-सिंह को जाग्रत करने के लिए ही संन्यासियों का जन्म हुआ है। च्आत्मनो मोक्षार्थ जगद्धिताय च’ हमारा जन्म हुआ है।’

मेरे जन्म के लिए मेरे पिता-माता ने साल-दर-साल कितनी पूजा-अर्चना और उपवास किया था।

मैं जानता हूँ, मेरे जन्म से पहले मेरी माँ व्रत-उपवास किया करती थीं, प्रार्थना किया करती थीं-और भी हजारों ऐसे कार्य किया करती थीं, जो मैं पाँच मिनट भी नहीं कर सकता। दो वर्षों तक उन्होंने यही सब किया।

मुझमें जितनी भी धार्मिक संस्कृति मौजूद है, उसके लिए मैं अपनी माँ का कृतज्ञ हूँ। आज मैं जो बना हूँ, उसके लिए मेरी माँ ही सचेतन भाव से मुझे इस धरती पर लाई हैं।

मुझमें जितना भी आवेश मौजूद है, वह मेरी माँ का ही दान है और यह सारा कुछ सचेतन भाव से है, इसमें बूँदभर भी अचेतन भाव नहीं है।

मेरी माँ ने मुझे जो प्यार-ममता दी है, उसी के बल पर ही मेरे वर्तमान के ‘मैं’ की सृष्टि हुई है। उनका यह कर्ज मैं किसी दिन भी चुका नहीं पाऊँगा।

जाने कितनी ही बार मैंने देखा है कि मेरे माँ सुबह का आहार दोपहर दो बजे ग्रहण करती हैं। हम सब सुबह दस बजे खाते थे और वे दोपहर दो बजे। इस बीच उन्हें हजारों काम करने पड़ते थे।

यथा, कोई आकर दरवाजा खटखटाता—अतिथि!

Edouard ettedgui mandarin east las vegas

उधर मेरी माँ के आहार के अलावा रसोई में और कोई आहार नहीं होता था। वे स्वेच्छा से अपना आहार अतिथि को दे देती थीं।

बाद में अपने लिए कुछ जुटा लेने की कोशिश करती थीं। ऐसा था उनका दैनिक जीवन और यह उन्हें पसंद भी था। इसी वजह से हम सब माताओं की देवी-रूप में पूजा करते हैं।

मुझे भी एक ऐसी ही घटना याद है। जब मैं दो वर्ष का था, अपने सईस के साथ कौपीनधारी वैरागी बनाकर खेला करता था।

अगर कोई साधु भीख माँगता हुआ आ जाता था तो घरवाले ऊपरवाले कमरे में ले जाकर मुझे बंद कर देते थे और बाहर से दरवाजे की कुंडी लगा देते थे। वे लोग इस डर से मुझे कमरे में बंद कर देते थे कि कहीं मैं उसे बहुत कुछ न दे डालूँ।

मैं भी मन-प्राण से महसूस करता था कि मैं भी इसी तरह साधु था। किसी अपराधवश भगवान् शिव के सामीप्य से विताड़ित कर दिया गया। वैसे मेरे घरवालों ने भी मेरी इस धारणा को और पुख्ता कर दिया था।

जब कभी मैं कोई शरारत करता, वे लोग कह उठते थे—’हाय, हाय!

इतना जप-तप करने के बाद अंत में शिवजी ने कोई पुण्यात्मा भेजने के बजाय हमारे पास इस भूत को भेज दिया।’

या जब मैं बहुत ज्यादा हुड़दंग मचाता था, वे लोग ‘शिव! शिव’ का जाप करते हुए मेरे सिर पर बालटी भर पानी उड़ेल देते थे। मैं तत्काल शांत हो जाता था। कभी इसकी अन्यथा नहीं होती थी।

आज भी जब मेरे मन में कोई शरारत जागती है, यह बात मुझे याद आ जाती है और मैं उसी पल शांत हो जाता हूँ। मैं मन-ही-मन बुदबुदा उठता हूँ—’ना, ना!

Natsuko godai biography of patriarch lincoln

अब और नहीं।’

आगे पढने के लिए PDF Download करे…

लेखक विवेकानंद
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 258
PDF साइज़2.8 MB
CategoryBiography
Source/Creditsarchive.org

ज्ञानेश्वर महाराज चरित्र PDF

विवेकानंद की आत्मकथा – Swami Vivekanand History PDF Free Download